नई दिल्ली: नौकरीपेशा लोगों के लिए संसद से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है. अक्सर देखा जाता है कि ऑफिस से निकलने के बाद भी कर्मचारियों को बॉस के फोन, ईमेल और मैसेज का जवाब देना पड़ता है, जिससे उनकी निजी जिंदगी प्रभावित होती है. इसी समस्या को खत्म करने और ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ सुधारने के लिए लोकसभा में ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025’ (Right to Disconnect Bill 2025) पेश किया गया है.

क्या है यह बिल और किसने पेश किया?
एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने लोकसभा में यह प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया है. इस बिल का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को दफ्तर के बाद के तनाव से मुक्त करना है, ताकि वे अपने परिवार और खुद के लिए समय निकाल सकें.
बिल की 4 बड़ी बातें जो हर कर्मचारी को जाननी चाहिए:
‘ना’ कहने का अधिकार: इस बिल के कानून बनने के बाद, कर्मचारियों को ऑफिस ऑवर (काम के घंटों) के बाद या छुट्टियों के दौरान दफ्तर से जुड़े कॉल, मैसेज या ईमेल का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकेगा.
कोई सजा या जुर्माना नहीं: अगर कोई कर्मचारी ड्यूटी खत्म होने के बाद बॉस का फोन नहीं उठाता या ईमेल का जवाब नहीं देता, तो कंपनी उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Action) नहीं कर सकती. न ही उसकी सैलरी काटी जा सकती है.
एम्प्लॉयी वेलफेयर अथॉरिटी: बिल में एक ‘Employee Welfare Authority’ बनाने का प्रस्ताव है. यह संस्था निगरानी रखेगी कि कंपनियों द्वारा नियमों का पालन हो रहा है या नहीं.
शिकायत का रास्ता: अगर कोई कंपनी कर्मचारियों पर जबरन काम का दबाव डालती है, तो कर्मचारी इस अथॉरिटी के पास जाकर शिकायत दर्ज करा सकेंगे.

क्यों पड़ी इस बिल की जरूरत?
कोविड महामारी के बाद से ‘वर्क फ्रॉम होम’ और हाइब्रिड मॉडल का चलन बढ़ा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इससे कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़ा है और काम के घंटे अनिश्चित हो गए हैं.
मानसिक तनाव: लगातार स्क्रीन के सामने रहने और हर वक्त ‘उपलब्ध’ रहने के दबाव के कारण लोग मानसिक थकान और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.
निजी जीवन पर असर: दफ्तर का काम घर तक आने से लोग अपने परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे.
निष्कर्ष
अगर यह बिल पास हो जाता है, तो यह भारत के करोड़ों कर्मचारियों के लिए एक गेम-चेंजर साबित होगा. यह न केवल मानसिक स्वास्थ्य को सुधारेगा, बल्कि कॉरपोरेट जगत को भी कर्मचारियों की निजी जिंदगी का सम्मान करने के लिए मजबूर करेगा.