संगठित क्षेत्र (Organized Sector) के करोड़ों कर्मचारियों के लिए एक बड़ी राहत भरी खबर आई है। पिछले काफी समय से यह चिंता जताई जा रही थी कि केंद्र सरकार द्वारा लागू किए जाने वाले ‘नए लेबर कोड’ (New Labour Codes) के कारण कर्मचारियों की हाथ में आने वाली सैलरी (Take-home Salary) में भारी कटौती हो सकती है। लेकिन अब श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (Ministry of Labour & Employment) ने स्पष्टीकरण देकर इस चिंता को खत्म कर दिया है।

मंत्रालय ने साफ किया है कि यदि भविष्य निधि (PF) के लिए 15,000 रुपये की वैधानिक सीमा (Statutory Wage Ceiling) को आधार माना जाता है, तो नए नियमों के लागू होने के बाद भी कर्मचारियों की टेक-होम सैलरी पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
आखिर क्यों खड़ा हुआ था सैलरी घटने का डर?
इस पूरे विवाद की जड़ नए ‘वेज कोड’ (Code on Wages, 2019) में दी गई “वेजेज” (Wages) की परिभाषा है।
1. नया नियम (50% का गणित): नए नियमों के मुताबिक, किसी भी कर्मचारी की बेसिक सैलरी (Basic Pay + DA + Retaining Allowance) उसकी कुल सीटीसी (CTC) का कम से कम 50 फीसदी होनी चाहिए।
2. पुरानी व्यवस्था: अब तक, ज्यादातर कंपनियां टैक्स और पीएफ का बोझ कम करने के लिए कर्मचारियों की बेसिक सैलरी कम रखती थीं और अलाउंस (जैसे HRA, स्पेशल अलाउंस आदि) का हिस्सा ज्यादा रखती थीं।
3. कर्मचारियों की चिंता: कर्मचारियों और HR एक्सपर्ट्स का मानना था कि जब बेसिक सैलरी बढ़ाकर 50% की जाएगी, तो पीएफ (जो बेसिक सैलरी का 12% होता है) भी बढ़ जाएगा। पीएफ ज्यादा कटने का सीधा मतलब था- हाथ में आने वाली सैलरी (Take-home) का कम हो जाना।

मंत्रालय की सफाई: ₹15,000 का ‘सेफ्टी वॉल्व’
श्रम मंत्रालय ने इस गणित को समझाते हुए स्पष्ट किया है कि टेक-होम सैलरी का घटना या बढ़ना पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि पीएफ की गणना किस राशि पर की जा रही है।
- EPFO का नियम: वर्तमान भविष्य निधि नियमों के अनुसार, पीएफ योगदान केवल 15,000 रुपये तक के मासिक वेतन पर अनिवार्य है।
- स्वैच्छिक योगदान: 15,000 रुपये से ऊपर की सैलरी पर पीएफ काटना पूरी तरह से ‘स्वैच्छिक’ (Voluntary) है, अनिवार्य नहीं।
- निष्कर्ष: अगर नए लेबर कोड के तहत किसी कर्मचारी की बेसिक सैलरी बढ़कर 25,000 रुपये या उससे अधिक भी हो जाती है, तो भी कंपनी के पास यह विकल्प है कि वह पीएफ की कटौती केवल 15,000 रुपये की सीमा पर ही सीमित रखे। यदि कंपनी ऐसा करती है, तो पीएफ का योगदान नहीं बढ़ेगा और कर्मचारी की टेक-होम सैलरी सुरक्षित रहेगी।
उदाहरण से समझें: कैसे नहीं घटेगी सैलरी?
मान लीजिए किसी कर्मचारी की कुल सैलरी (CTC) 50,000 रुपये है।
- डर (The Fear): अगर नए नियम में बेसिक सैलरी 25,000 रुपये (50%) करनी पड़ी, और पीएफ पूरे 25,000 पर कटा, तो 12% के हिसाब से 3,000 रुपये कटेंगे। इससे इन-हैंड सैलरी कम हो जाएगी।
- वास्तविकता (The Reality): मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बाद, कंपनी बेसिक सैलरी तो 25,000 रुपये दिखाएगी, लेकिन पीएफ की गणना सिर्फ 15,000 रुपये (कैपिंग लिमिट) पर कर सकती है। इस स्थिति में पीएफ केवल 1,800 रुपये (15,000 का 12%) ही कटेगा।
इस तरह सैलरी स्ट्रक्चर बदलने के बावजूद, पीएफ कटौती सीमित रहेगी और कैश-इन-हैंड पर असर नहीं पड़ेगा।

भविष्य के लिए क्या हैं संकेत?
हालांकि, टेक-होम सैलरी सुरक्षित रहने का मतलब है कि आपके रिटायरमेंट फंड (PF Corpus) में जमा होने वाली राशि भी सीमित रहेगी।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह स्पष्टीकरण उन कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत है जिन्हें घर खर्च चलाने के लिए हर महीने ज्यादा नकदी की जरूरत होती है। वहीं, जो लोग ज्यादा पीएफ कटवाकर रिटायरमेंट सुरक्षित करना चाहते हैं, वे अपनी कंपनी से पीएफ योगदान बढ़ाने (VPF) का अनुरोध कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
श्रम मंत्रालय के इस जवाब ने यह साफ कर दिया है कि नया लेबर कोड ‘सैलरी काटने’ के लिए नहीं, बल्कि वेतन ढांचे को व्यवस्थित करने के लिए है। अब यह कंपनियों (Employers) पर निर्भर करेगा कि वे पीएफ की गणना ₹15,000 की सीमा पर करते हैं या वास्तविक बढ़ी हुई बेसिक सैलरी पर।